लेखनी कहानी -24-Nov-2022 (यादों के झरोखे से :-भाग 11)
बात उस समय की है, जब मैं कक्षा 11 की विद्यार्थी थी। मेरा दाखिला, दूसरे शहर के एक बहुत ही अच्छे विद्यालय में करवाया गया। पूरा वातावरण और मेरे सहपाठी सभी मेरे लिए नए थे। हमारे विद्यालय में प्रवेश हेतु, मुझे प्रधानाचार्य महोदय को साक्षात्कार देना पड़ा। उन्होंने मुझे अनुमति दी। विद्यालय में एक बहुत ही सुंदर लाइब्रेरी थी। मेरे कुछ रिश्तेदारों ने मेरे पिताजी को एक हिंदी माध्यम विद्यालय में।मुझे डालने को कहा। परंतु, चूंकि मैं आरंभ से ही एक अंग्रेज़ी माध्यम की शिष्या रही थी। पिताजी को मुझे हिंदी माध्यम में दाखिला करवाना अनुचित प्रतीत हुआ। उनको लगा कि मेरा परिणाम गड़बड़ा जाएगा।
नए विद्यालय में रोज़ सुबह- सवेरे प्रधानाचार्य महोदय गायत्री माता का हवन करते थे। सुबह का माहौल एकदम खुशनुमा , शांत और सकारात्मक महसूस होता था। चूंकि मैं स्वभाव से अंतर्मुखी थी, मेरे ज़्यादा मित्र नहीं थे। मेरी मौसी के देवर की लड़की भी मेरे साथ थी। वह भी मेरी ही नाम राशि थी, हमारे सहपाठी हमें स्वाति एंड स्वाति कहते थे। वह स्वभाव से बहिर्मुखी होने के कारण सभी से सरलता से वार्तालाप कर लेती थी। लेकिन वह गणित की शिष्या थी और मैं जीव विज्ञान की। हमारी सभी कक्षाएं एक साथ लगती, बस उसका गणित विषय और मेरा जीव विज्ञान होने के कारण बाई कक्षा अलग लगती थी। परंतु, वह कभी कभी विद्यालय जाती, क्योंकि उसने आई.आई.टी. से संबंधित कोई कोचिंग में दाखिला लिया हुआ था।
मैं आरंभ से ही कक्षा में प्रथम स्थान पर बैठती आई थी। इसीलिए मुझे पीछे बैठना पसंद नहीं आता था। इसीलिए मैं सुबह जल्दी विद्यालय जाना पसंद करती थी। मेरे माता- पिता ने मुझे मेरी मौसी के यहां रखा था, क्योंकि उन्हें लगता था की मैं पहली बार घर से बाहर रह रही हुं, तो पता नहीं रह पाऊंगी या नहीं। मेरे मौसाजी मेरा बहुत ख्याल रखते थे मुझे सुबह समय से नाश्ता, दूध देते और समय से विद्यालय भी छोड़ने जाते। विद्यालय से आते समय मैं पैदल आ जाया करती थी। वहां थोड़े समय बाद मेरी एक सहेली बनी नयनदीप। हम दोनों ही विद्यालय साथ में आ जाया करते थे।
उसके पास साइकिल थी, मुझे साइकिल चलनी नही आती थी और उसे साइकिल पर दूसरे को बैठकर चलन नहीं आता था। इसीलिए सुबह वह साइकिल से आती और दोपहर में मेरे साथ पैदल चलती। मैंने कई बार उसे कहा भी कि तुम मेरे कारण क्यों परेशान होती हो? साइकिल हैं तो उसी से चली जी करो। परंतु, वह नहीं मानती। हमें विद्यालय से घर आने में पूरा आधा घंटा लगता था। फिर भी वह मेरे साथ ही आती। रास्ते में हम दोनों ढेर सारी बातें करते हुए आते। धीरे- धीरे हम दोनों पक्के दोस्त बन गए। ये यादें वाकई में काफ़ी अनमोल हैं।
Pratikhya Priyadarshini
30-Nov-2022 09:05 PM
Shandar 🌸🌺💐
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Swati Sharma
30-Nov-2022 10:20 PM
Dhanyawaad 🙏🏻😇💐
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